कलम गुमों की दे, अश्कों की रोशनियाँ दे।
गिरे पड़े लफ्जों को चुन रहा हूँ मैं,
हदें-सुखान की न मुझे कोई दुहाई दे।
मैं अपने शेरो में इतना ख़याल रखता हूँ,
कहा गया है जो उनमे, तुझे सुनाई दे।
तेरे बहानों पे मुझको यकीन रहता है,
भरम ना तोड़ मेरा, कुछ ना तू सफाई दे।
नज़र में,
दिल में,
फिजा में,
ग़ज़ल के शेरो में,
जहा भी देखू मुझे, तू ही तू दिखाई दे.
ज़ख़्मी
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