Sunday, May 24, 2009

मुझे चाहने दे........

मुझे चाहने दे यूँ सदा, तू भले वफ़ा का सिला ना दे।
ये गुनाह है तो बता ज़रा, कहा कब मैंने सज़ा ना दे।

मैंने मंजिल की सदा सुनी, इन्ही तेज लहरों के शोर में।
मैं तमाम दूर निकल चुका, मुझे साहिलों से सदा ना दे।

मुझे बादशाहे खुदी बना, तू मुहब्बतों के लिबास से।
मुझे सब फ़कीर का नाम दे, मेरे जिस्म को वो काबा ना दे।

ना मैं दिल का दर्द सूना सकूँ, ना मैं आंसुओं को बहा सकूँ।
जो गरज सके ना बरस सके, मुझे गम की ऐसी घटा ना दे।

मेरे चाँद अब तो निकल भी आ, तू इन कशमकश की घटाओं से।
तेरी मुन्ताजीर मेरी चश्मे नाम, की इन सरहदों को हटा भी दे..........
ज़ख्मी.......

किसी के प्यार की खुशबु हवा में शामिल है.


नज़र से दूर है मगर, फिजा में शामिल है।

किसी के प्यार की खुशबु हवा में शामिल है।


मैं चाहकर भी तेरे पास आ नही सकता,

की दूर रहना भी मेरी वफ़ा में शामिल है।


खजाने गम के मेरे दिल में दफ़न है, यारों

ये मुस्कुराना तो मेरी अदा में शामिल है।


खुदा करे की, ये उसको कभी पता ना चले ,

की बेबसी भी हमारी रजा में शामिल है।


तूफ़ान में हमको छोड़ के जाने का शुक्रिया,

खैर्सिगली मेरी उर्दू जुबान में शामिल है।


तेरे सुलूक ने जीना सिखा दिया, लेकिन

तेरे बगैर ये जीना सज़ा में शामिल है।
ज़ख़्मी


ख्वाब लिखता है कोई?


अपनी पलकों पर ख्वाब लिखता है कोई।

अपनी खातिर अजब लिखता है कोई।

आंसुओं से वरक भिगोता है कोई।

जाने कैसे किताब लिखता है।

मुझसे शायद खफा खफा सा है,

ख़त में मुझको जनाब लिखता है।

सारे जहाँ में उग गए कांटे,

कौन किसको गुलाब लिखता है।

कोई महिवाल मेरे दिल में है,

हर नदी को चिनाब लिखता है।

जब भी देखू मैं तेरी सूरत को,

जाने क्या महताब लिखता है?

ज़ख्मी...