अपनी पलकों पर ख्वाब लिखता है कोई।
अपनी खातिर अजब लिखता है कोई।
आंसुओं से वरक भिगोता है कोई।
जाने कैसे किताब लिखता है।
मुझसे शायद खफा खफा सा है,
ख़त में मुझको जनाब लिखता है।
सारे जहाँ में उग गए कांटे,
कौन किसको गुलाब लिखता है।
कोई महिवाल मेरे दिल में है,
हर नदी को चिनाब लिखता है।
जब भी देखू मैं तेरी सूरत को,
जाने क्या महताब लिखता है?
ज़ख्मी...
No comments:
Post a Comment