Thursday, June 4, 2009

तुम जो आओ, आंसुओं से तुम्हारे पाँव धो लें.


वास्ता रखें किसी और से और फ़िर तुम्हारा हो लें,

चार दिन की जिंदगी में हर खुशी का रंग घोलें।

हर तरफ़ तो तोहमतें ही तोहमतें है इस जहाँ में,

हो सके तो अपने मुह से प्यार के दो बोल बोलें।

लौट आएँगी बहारें फ़िर चमन में ख़ुद-बा-ख़ुद ही,

कोशिशों से ख्वाहिशों के बंद दरवाजे को खोलें।

देखना इन डालियों पर फ़िर खिलेंगे फुल-पत्ते,

इन दरख्तों की जड़ों में मेहनतों का रंग घोलें।

मिलते-जुलते कट ही जायेंगी दुखों की चार घडियां,

जिंदगी के इस सफर में गर किसी के साथ हो लें।

धुप सिरहाने उतर कर कान में यूँ कह गई,

जाग गया सारा जमाना बंद दरवाजे को खोलें।

तुम ना आए राह तकती आँखें पत्थर हो चुकी अब,

तुम जो आओ आंसुओं से हम तुम्हारे पाँव धो लें।
ज़ख़्मी

Monday, June 1, 2009

आंखों से सपने सुहाने गए.


उनके जाते ही मौसम सुहाने गए,

मुस्कुराने के सारे बहाने गए।

अब किसी से भी कोई शिकायत नही,

अपनी आंखों से सपने सुहाने गए।

जिस सफर की कहीं कोई मंजिल ना थी,

उस सफर पर हमेशा दीवाने गए।

हौंसला अपना आंधी से टकरा गया,

हम चिरागों को छत पर जलाने गए।

शाम को खिड़कियाँ बंद रहने लगीं,

प्यार करने के शायद जमाने गए।

लेके दामन में लौटे नए जख्म हम,

जिंदगी जब भी तुझको मनाने गए।
ज़ख़्मी

हाय हम क्या से क्या हो गए?


सारे सपने कही खो गए,

हाय हम क्या से क्या हो गए।?

दिल से तन्हाई का दर्द जीता,

क्या कहें हम पे क्या-क्या ना बिता।

तुम ना आए, मगर जो गए,

हाय हम क्या से क्या हो गए।?

तुमने हमसे कहीं थी जो बातें,

उनको दोहरातीं हैं गम की रातें।

तुमसे मिलने के दिन खो गए,

हाय हम क्या से क्या हो गए?

कोई शिकवा ना कोई गिला है,

तुमसे कब हमको ये गम मिला है।

हाँ नसीब अपने ही सो गए,

हाय हम क्या से क्या हो गए?

सारे सपने कहीं खो गए,

हाय हम क्या से क्या हो गए?
ज़ख़्मी