Monday, June 1, 2009

आंखों से सपने सुहाने गए.


उनके जाते ही मौसम सुहाने गए,

मुस्कुराने के सारे बहाने गए।

अब किसी से भी कोई शिकायत नही,

अपनी आंखों से सपने सुहाने गए।

जिस सफर की कहीं कोई मंजिल ना थी,

उस सफर पर हमेशा दीवाने गए।

हौंसला अपना आंधी से टकरा गया,

हम चिरागों को छत पर जलाने गए।

शाम को खिड़कियाँ बंद रहने लगीं,

प्यार करने के शायद जमाने गए।

लेके दामन में लौटे नए जख्म हम,

जिंदगी जब भी तुझको मनाने गए।
ज़ख़्मी

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