दूर रहकर भी, नज़र पास वो आती है कभी,
प्यार लफ्जों में छुपा कर वो जताती है कभी।
श्याम बेला सी महकती है कभी साँसों में,
और परी बनके मेरे ख्वाब सजाती है कभी।
जब कभी आइना देखूं तो अपनी आंखों में,
सांवली मोहनी सूरत नज़र आती है कभी।
वो बढाती है मेरे हौसले राधा बनकर,
श्याम की बावरी मीरा नज़र आती है कभी।
समझ लेगी वो मेरी बात मेरी गज़लों से,
बात ऐसी भी मेरे दिल को बहलाती है कभी।
सोचता हूँ कभी कह दूँ की उसको पाना है,
खोने के डर से जुबान बंद हो जाती है कभी।
ज़ख़्मी
ज़ख़्मी