Saturday, May 30, 2009

कमी क्या है?


लबों को सी लिया हमने तो हर्ज ही क्या है?

तेरी निगाह में कीमत जुबा की क्या है?

जो रख चुका है कदम चाँद पर बताये मुझे,

ये चाँद कैसे चमकता है चांदनी क्या है?

जो मुफलिसी को मिटाने की बात करता है,

वो जानता ही नही मुफलिसी क्या है?

हजार बार मैंने दिल को जला के देख लिया,

सनम बता दे मुहब्बत की रौशनी क्या है?

खालिश है, दर्द है, रंजो आलम है, आंसू है,

तुम्हारी दी हुई हर चीज़ है,

कमी क्या है?

बता कमी क्या है? ? ? ? ?
ज़ख़्मी

कोई और मेरी खता नही.


यहाँ चाहतों का सिला नही।

यहाँ दोस्ती का मजा नही।

यहाँ जाने कैसी हवा चली,

राही दोस्तों में वफ़ा नही।

यहाँ जल गया मेरा आशियाना,

अभी बादलों को पता नही।

तेरे दर पे दस्तक दे सकूँ,

ये हक़ तो तुने दिया नही।

मैं राही हूँ राह-ऐ-उम्मीद का,

मुझे मंजिलों का पता नही।

मैं बस हूँ जहाँ में इतना,

जैसे मेरा कोई खुदा नही।

मेरी सादगी मेरा जुर्म है,

कोई और मेरी खता।
ज़ख़्मी



क्या फायदा?


क्या फायदा किसी को चाहने का,

क्या फायदा किसी की यादों में आंसू बहाने का?


जो समझे ना किसी के दिल में बसे प्यार को,

क्या फायदा उसके प्यार के लिए दिल को तरपाने का?


छोटे से दिल को मिलते गम बहुत है,

ज़िन्दगी में मिलते हर पल ज़ख्म बहुत है।


मार ही डालती कबकी ये दुनिया,

कमबख्त दोस्तों की दुआओं में दम बहुत है।


उसने जो मेरा साथ ना दिया,

शायद उसकी भी कोई मज़बूरी थी।


बेवफा तो वो हो नही सकता,

शायद मेरी मुहब्बत ही अधूरी थी
ज़ख़्मी


जाने दो...........

जो सुना, जो कहा।

जाने दो।

इक सपना ही था,

जाने दो-जाने दो।

तेरा मिलना भी क्या, जैसे मौसम गया।

चाँद कहने लगा,

ना कहो,

जाने दो-जाने दो।

आना जाना तेरा लगता है,

फ़साना था,

तुमसे मिलना, बातें करना,

बहाना था,

वही है वो नदिया,

वही चांदनी,

मगर जान-ऐ-जाना,

कही तुम नही,

कही तुम नही।

क्या कहें क्या कहें,

तुम नही कुछ नही।

सारे वादे तेरे याद है मुझे

चाँद कहने लगा

न कहो,

जाने दो-जाने दो।

जब से रिश्ता तोड़ के

हमने तुन्हें चाहा था

रास्ता जिसमे साथ हो

वो रास्ता अपनाया था

वही है वो खिड़की

वही बाली थी,

मुहब्बत तुम्हारी भी

इक खेल थी,

इक खेल थी।

क्या कहें-क्या कहे,

तुम नही कुछ नही।

फुल खिलते भी है, लोग मिलते भी है।

चान कहने लगा

ना कहो,

जाने दो-जाने दो।
ज़ख़्मी

मुझे आ के जगा दे.


मुद्दत से हूँ ख्वाबीदा, मुझे आ के जगा दे।

ऐ इश्क मेरे दिल में फ़िर इक आग लगा दे।

मैं राज़ लिए तेरा कलेजे में ही मर जाऊं,

तू मेरी कहानी भरी महफिल में सूना दे।

मैं दर्द के जंगल से कहा जाऊं निकल कर,

तू साथ मेरे चल, तू मुझे राह दिखा दे।

मैं उतने दिनों और तेरी राह ताकुंगा,

तू जितने दिनों और मिलने की सजा दे।

मैं सुखा हुआ पेड़ हूँ, साया भी ना दूंगा,

तू काट दे मुझको, किसी चूल्हे में जला दे।

मैं तेरे सिवा किसी को भी ना चाहूँ,

तू मुझसे जुदा हो तो हजारों को सजा दे।

मैं गीत मुहब्बत का हूँ, मुझे आवाज दे,

होटों पे सजा कर तू मेरी बिगड़ी बना दे।
ज़ख़्मी


ज़िन्दगी तुने हुम्नको मगर नचाया है बहुत.


कह दिया हमने बहुत कुछ, और पाया है बहुत।

ज़िन्दगी तुने हमको मगर नचाया है बहुत।

वो सफर लेकर कहा जाएगा, ये ख़ुद सोचिये।

जिस सफर में धुप है थोडी सी, छाया है बहुत।

दोस्तों ने दुश्मनी भी की तो, किस अंदाज में।

सजर पे तारीफ़ की, हमको चढाया है बहुत।

मुझसे बेहतर कौन समझेगा जुदाई की तड़प,

तितलियों को हमने फूलों से उडाया है बहुत।

आंसुओं का रंग भी पानी जैसा है, मगर,

आंसुओं का रंग भी अक्सर रंग लाया है बहुत।

दाल-पात, लुक्का-छिप्पी, और बुधे बरगद का दरख्त,

मीत तेरी प्रीत ने हमको रुलाया है बहुत।

जिनको दादी ने सुनाया था सुलाने के लिए,

हमको उन् किस्सों ने एरातों को जगाया है बहुत।
ज़ख़्मी