मुद्दत से हूँ ख्वाबीदा, मुझे आ के जगा दे।
ऐ इश्क मेरे दिल में फ़िर इक आग लगा दे।
मैं राज़ लिए तेरा कलेजे में ही मर जाऊं,
तू मेरी कहानी भरी महफिल में सूना दे।
मैं दर्द के जंगल से कहा जाऊं निकल कर,
तू साथ मेरे चल, तू मुझे राह दिखा दे।
मैं उतने दिनों और तेरी राह ताकुंगा,
तू जितने दिनों और मिलने की सजा दे।
मैं सुखा हुआ पेड़ हूँ, साया भी ना दूंगा,
तू काट दे मुझको, किसी चूल्हे में जला दे।
मैं तेरे सिवा किसी को भी ना चाहूँ,
तू मुझसे जुदा हो तो हजारों को सजा दे।
मैं गीत मुहब्बत का हूँ, मुझे आवाज दे,
होटों पे सजा कर तू मेरी बिगड़ी बना दे।
ज़ख़्मी
ज़ख़्मी
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