कह दिया हमने बहुत कुछ, और पाया है बहुत।
ज़िन्दगी तुने हमको मगर नचाया है बहुत।
वो सफर लेकर कहा जाएगा, ये ख़ुद सोचिये।
जिस सफर में धुप है थोडी सी, छाया है बहुत।
दोस्तों ने दुश्मनी भी की तो, किस अंदाज में।
सजर पे तारीफ़ की, हमको चढाया है बहुत।
मुझसे बेहतर कौन समझेगा जुदाई की तड़प,
तितलियों को हमने फूलों से उडाया है बहुत।
आंसुओं का रंग भी पानी जैसा है, मगर,
आंसुओं का रंग भी अक्सर रंग लाया है बहुत।
दाल-पात, लुक्का-छिप्पी, और बुधे बरगद का दरख्त,
मीत तेरी प्रीत ने हमको रुलाया है बहुत।
जिनको दादी ने सुनाया था सुलाने के लिए,
हमको उन् किस्सों ने एरातों को जगाया है बहुत।
ज़ख़्मी
ज़ख़्मी
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