जो सुना, जो कहा।
जाने दो।
इक सपना ही था,
जाने दो-जाने दो।
तेरा मिलना भी क्या, जैसे मौसम गया।
चाँद कहने लगा,
ना कहो,
जाने दो-जाने दो।
आना जाना तेरा लगता है,
फ़साना था,
तुमसे मिलना, बातें करना,
बहाना था,
वही है वो नदिया,
वही चांदनी,
मगर जान-ऐ-जाना,
कही तुम नही,
कही तुम नही।
क्या कहें क्या कहें,
तुम नही कुछ नही।
सारे वादे तेरे याद है मुझे
चाँद कहने लगा
न कहो,
जाने दो-जाने दो।
जब से रिश्ता तोड़ के
हमने तुन्हें चाहा था
रास्ता जिसमे साथ हो
वो रास्ता अपनाया था
वही है वो खिड़की
वही बाली थी,
मुहब्बत तुम्हारी भी
इक खेल थी,
इक खेल थी।
क्या कहें-क्या कहे,
तुम नही कुछ नही।
फुल खिलते भी है, लोग मिलते भी है।
चान कहने लगा
ना कहो,
जाने दो-जाने दो।
ज़ख़्मी
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