Saturday, July 4, 2009

समंदर की हवाओं पर तुम्हारा नाम लिख दूंगी.

समंदर की हवाओं पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।
मैं, साहिल पर,
मैं, लहरों पर,
तुम्हारा (?) नाम लिख दूंगी।
महक उठेगा आँगन फ़िर मेरा,
आँगन के फूलों से
मैं जब आँगन के फूलों पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।

ऐसा होगा ना मेरे हाथ में जब पार करने को,
मैं दरिया किनारे पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।
खाला मैं जाउंगी इक शब् और अपने हाथो से
फलक के सब सितारों पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।

खुशी से रो पड़ेगी देख लेना
बेलों की कलियाँ
मैं, जब बेलों की कलियों पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।
तुम्हारा (?) नाम हाथों में जो कुदरत ने नही लिखा,
तो,
मैं, ख़ुद अपने हाथो पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।

धनक उभरेगी जब हंजा इक गहरे बादल पर
धनक के सारे रंगों पर तुम्हारा (?) नाम लिख
दूंगी।
"जख्मी"
(?)

समंदर की हवाओं पर तुम्हारा नाम लिख दूंगी.

कभी जो हम नही होंगे?

कभी जो हम नही होंगे, कहो किसको बताओगे?
वो अपनी उलझने सारी
वो बेचैनी में दुबे पल
वो आँखों में छुपे आंसू
किसे फ़िर तुम दिखाओगे? कभी जो हम नही होंगे?
बहुत बेचैन होगे तुम
बहुत तन्हा रह जाओगे
अभी भी तुम नही समजे
हमारी अनकही बातें
मगर जब याद आएंगे
बहुत तुमको रुलायेंगे
बहुत चाहोगे फ़िर भी तुम हमे ना ढूंढ़ पाओगे।
कभी जो हम नही होंगे।??????????
"जख्मी"

ख़ुद अपने वास्ते नासूर हूँ.

बस इतनी बात पर मगरूर हूँ,
कि,
शायद मैं तुझे मंजूर हूँ।
जमाने के लिए मरहम हूँ मैं,
ख़ुद,
अपने वास्ते नासूर हूँ।
निभाना सबके बस का भी नही,
मुहब्बत का मैं वो दस्तूर हूँ।
मेरी आँखों के आगे स्याह रातें,
पर.......
उसकी याद से पुरनूर हूँ।
मेरी बर्दाश्त की हद हो चुकी,
मैं कुछ करने पे अब मजबूर हूँ....................
"जख्मी"

हमारे इश्क को ज्यादा जवां होना है.

हमारे इश्क को ज्यादा जवां होना है,
अभी तो कत्ल का किस्सा बयां होना है।
समझ रहा था कि बस इम्तिहान ख़त्म हुआ,
अभी तो और भी इक इम्तिहान होना है।
जमाने भर में हुई जिसके वास्ते बदनाम,
उसी बसर का यहाँ पर बयां होना है।
वो, जिसकी बात बगावत के रंग में है रंगी,
वो तिफ्ल है उसे ऐ-हले जबां होना है।
हमे यकीं है सूरज जमीं पे उतरेगा,
हमारी बात का सभी को गुमां होना है।
लहू-लुहान जिगर लेकर मुस्कुराते है,
अभी तो दर्द की जड़ को जवां होना है।
हुई है राख फसादों की बस्तियां जल कर,
अभी तो तय है की अमनो अमान होना है।
"जख्मी"