Monday, May 25, 2009

क्या था कसूर मेरा?

क्या था कसूर मेरा, ये बताते जाते,
कोई कहानी लोगो को सुनाते जाते।
मैंने सोचा दिल मेरा लौटा के जाओगे
जान भी लिए जा रहे हो, जाते जाते।
कितने सपने देखे हमने जिनकी खातर,
छोड़ गए हमें तनहा जाते जाते।
वो तो ना आए पर यादें आती रही,
कैसे कहे, क्या हाल है,
जब उन्होंने ही मुह फेर लिया, सामने से आते आते।
ज़ख़्मी

गर फासला रखते..........?

हम और दरमियान रिश्तों के फासला रखते,
खुलूस वाले जो मिलते तो वास्ता रखते।

जो खोफ आंधी से खाते तो अपने रहने को,
परिंदे किस लिए तिनकों का घोंसला रखते।

ना जाते तुम भी किसी बूत्कडे में मेरी तरह,
जो अपने दिल में कोई प्यार का खुदा रखते।

पहुँच ही जाता उजाला तुम्हारे कमरे में,
दरीचा अपने मकान का अगर खुला रखते।

तमाम रिश्ते कभी के बिखर गए होते,
जो उनके बीच ना थोडा सा फासला रखते।

ये तुमने ठीक किया घर को राख कर डाला,
धुआं निकलता अगर उनको अधजला रखते।

किसे ख़बर थी तेरे गाँव की रिवायत का,
वगरना दिल को हम सीने में ही दबा रखते।
ज़ख़्मी

चैन से ज़ख्मी को जीने दीजिये.

चंद लम्हे संग जीने दीजिये,
घूंट भर आकाश पिने दीजिये।
हो अगर कोई नदी एहसास की,
वो उम्मीदों के साफिने दीजिये।
नफरतों में जल रहे इंसान को,
प्यार के मन्दिर-मदीने दीजिये।
फूल से नाजुक नरम जज्बात को,
पत्थरों से सख्त सिने दीजिये।
रूप नयनों का बिखरना चाहिए,
आंसुओं को कुछ नगीने दीजिये।
ऐश में दुबे हुए ईमान को,
कुछ मश्हक्कत, कुछ पसीने दीजिये।
आप गुल्छ्र्रें उडाएं ठीक है,
चैन से ज़ख्मी को जीने दीजिये.

चैन से ज़ख्मी को जीने दीजिये.

पा ना सके.



हमने जिसे चाहा , उसे पा ना सके।


हमने जिसे देखा, उसे निभा ना सके।


ख्वाहिशें तो बहुत थी दिल में,


पर....


बता ना सके।


हमने जिसे चाहा, उसे पा ना सके।


करते रहे दिल ही दिल में मुहब्बत,


वो थे की हमे पहचान ना सके।


करते थे हम इनकार, जब आते थे सामने वो,


करते थे इकरार जब मिलाते थे नजर वो।


हम तो बैठे थे इंतजार में उनके ..................?

ज़ख़्मी


पा ना सके.