Monday, May 25, 2009

चैन से ज़ख्मी को जीने दीजिये.

चंद लम्हे संग जीने दीजिये,
घूंट भर आकाश पिने दीजिये।
हो अगर कोई नदी एहसास की,
वो उम्मीदों के साफिने दीजिये।
नफरतों में जल रहे इंसान को,
प्यार के मन्दिर-मदीने दीजिये।
फूल से नाजुक नरम जज्बात को,
पत्थरों से सख्त सिने दीजिये।
रूप नयनों का बिखरना चाहिए,
आंसुओं को कुछ नगीने दीजिये।
ऐश में दुबे हुए ईमान को,
कुछ मश्हक्कत, कुछ पसीने दीजिये।
आप गुल्छ्र्रें उडाएं ठीक है,
चैन से ज़ख्मी को जीने दीजिये.

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