Monday, May 25, 2009

गर फासला रखते..........?

हम और दरमियान रिश्तों के फासला रखते,
खुलूस वाले जो मिलते तो वास्ता रखते।

जो खोफ आंधी से खाते तो अपने रहने को,
परिंदे किस लिए तिनकों का घोंसला रखते।

ना जाते तुम भी किसी बूत्कडे में मेरी तरह,
जो अपने दिल में कोई प्यार का खुदा रखते।

पहुँच ही जाता उजाला तुम्हारे कमरे में,
दरीचा अपने मकान का अगर खुला रखते।

तमाम रिश्ते कभी के बिखर गए होते,
जो उनके बीच ना थोडा सा फासला रखते।

ये तुमने ठीक किया घर को राख कर डाला,
धुआं निकलता अगर उनको अधजला रखते।

किसे ख़बर थी तेरे गाँव की रिवायत का,
वगरना दिल को हम सीने में ही दबा रखते।
ज़ख़्मी

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