तू चाहे मुझे, ऐसी किस्मत कहा थी?
कहाँ मैं कहाँ तू ये निस्बत कहाँ थी?
तेरी बेरुखी से ये दिल मुख्तारिब था,
मेरा हाल तू जाने तुझे फुर्सत कहाँ थी?
मेरी चाहतों की तुझे क्या ख़बर थी,
तू सोचे मुझे ये तेरी फितरत कहाँ थी?
तुझे अपने मन से निकालू थो कैसे?
मैं पा लू तुझे ये मेरी किस्मत कहाँ थी?
जो बन जाता मेरा हमसफ़र कही तू,
भला मेरी ऐसी किस्मत कहाँ थी?
जिसे सुनके तुने निगाहें झुका ली,
ये नोहा था मेरा शिकायत कहाँ थी?
तू जो कुछ भी था बस एक वहम था,
मुलीम का फरेब-ऐ-नज़र था,
हकीकत कहाँ थी........!
ज़ख़्मी
ज़ख़्मी
very good blog, congratulations
ReplyDeleteregard from Reus CAtalonia Spain
thank you