Saturday, May 23, 2009

आज भी है.....


मेरे दिल पे किसी का राज़ आज भी है।

जितना था पहले इतना जालिम,

समझ आज भी है।

तुम ये समझे हो की,

मैं आदि हो चुका हु सितम का।

हालांकि मुझे कल भी ऐतराज़ था,

आज भी है।

मरीज़ अपनी मूलआइज़ की सितम-जारीकी का

शिकार आज भी है।

हाँ ये इश्क है ला-इलाज,

आज भी है.
ज़ख़्मी

No comments:

Post a Comment