वास्ता रखें किसी और से और फ़िर तुम्हारा हो लें,
चार दिन की जिंदगी में हर खुशी का रंग घोलें।
हर तरफ़ तो तोहमतें ही तोहमतें है इस जहाँ में,
हो सके तो अपने मुह से प्यार के दो बोल बोलें।
लौट आएँगी बहारें फ़िर चमन में ख़ुद-बा-ख़ुद ही,
कोशिशों से ख्वाहिशों के बंद दरवाजे को खोलें।
देखना इन डालियों पर फ़िर खिलेंगे फुल-पत्ते,
इन दरख्तों की जड़ों में मेहनतों का रंग घोलें।
मिलते-जुलते कट ही जायेंगी दुखों की चार घडियां,
जिंदगी के इस सफर में गर किसी के साथ हो लें।
धुप सिरहाने उतर कर कान में यूँ कह गई,
जाग गया सारा जमाना बंद दरवाजे को खोलें।
तुम ना आए राह तकती आँखें पत्थर हो चुकी अब,
तुम जो आओ आंसुओं से हम तुम्हारे पाँव धो लें।
ज़ख़्मी
ज़ख़्मी
waah , bahut sahin kahan :)
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